नाव हमारी है अड़ी, बिन लंगर बिन बांध।
हिला सके कोई नही, नीचे इतना गाद।।
देश समेटा नाव में, नैया खेवन हार।
खड़े किनारे देखते , सबको जाना पार ।।
धन की खेती हो रही ,जनता बनी किसान ।
कटी फसल है भर रही ,नेता के खलिहान।।
हिला सके कोई नही, नीचे इतना गाद।।
देश समेटा नाव में, नैया खेवन हार।
खड़े किनारे देखते , सबको जाना पार ।।
धन की खेती हो रही ,जनता बनी किसान ।
कटी फसल है भर रही ,नेता के खलिहान।।