फूलों सा हंसता हुआ
आता लाल बसंत
छा जाती मनहर छटा
अद्भुत और अनंत
यौवन सा उद्दाम ताप
गर्मी लेती अंगड़ाई
अंधड़ सी अगनाई।
प्रौढ़ अवस्था सी वर्षा ऋतु
बरसाती गगनांगन
ममता आंचल फहराती
आती हरियाली मनभावन।
शरद शिशिर संग संग आती
चलने की अंतिम छाया
झुकती कंधे सिकुड़ी काया
शाीत शहर से ंकंपित काया।
आता लाल बसंत
छा जाती मनहर छटा
अद्भुत और अनंत
यौवन सा उद्दाम ताप
गर्मी लेती अंगड़ाई
अंधड़ सी अगनाई।
प्रौढ़ अवस्था सी वर्षा ऋतु
बरसाती गगनांगन
ममता आंचल फहराती
आती हरियाली मनभावन।
शरद शिशिर संग संग आती
चलने की अंतिम छाया
झुकती कंधे सिकुड़ी काया
शाीत शहर से ंकंपित काया।