Wednesday 17 April 2024

Bhajan1

 

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Friday 29 March 2024

bachpan

 नहीं भूलता बचपन


नही भूल पाता वो प्यारा सा बचपन

न्यारा सा बचपन हमारा वो बचपन

नही भूल पाता नन्हा सा बचपन

सदा याद रहता हमको वो बचपन

मिट्टी के अनगढ़ खिलौने बनाना

कॉपी के पन्नों से नावें बनाना

छोटी सी गुड़िया को दुल्हन बनाना

सहेली के गुड्डे से शादी रचाना

दीदी की चुन्नी को साड़ी बनाना

आंॅगन मंे कागज की तुरही बजाना

विदा करके गुड़िया को रोना रुलाना

जिद करके वापस वो गुड़िया को लाना

चिपका के छाती से उसको लगाना

वो हॅंसना वो रोना वो मांॅ का मनाना

बाबू की गोदी मे सोना सुलाना

दादी की बंॉहों का झूला बनाना

चीनी खटाई को चुपके से खाना

छत की मुंडेरांे पर कुदकी लगाना

डर कर के अम्मा का छाती लगाना

वो छिप्पन छिपाई पतंगें उड़ाना

नही लौट सकता हमारा वो बचपन

नही आयेगा  फिर से प्यारा वो बचपन

बच्चांें के बचपन में देखेंगे बचपन

अनोखा वो बचपन प्यारा सा बचपन

बचपन की नन्ही सी यादें है जीवन 

खट्टी सी मीठी सी यादेां की सीवन

तितली सी मंडराती फिरती वो यादें 

आंॅखों में  रहती हैं सपनीली यादें ।



Tuesday 26 March 2024

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Sunday 24 March 2024

नृत्य nati

 नृत्य नटी



नई नई पोषाकों के संग

धरती हंसती आती है

लाल लाल पीले फूलांे की

बालों मंे किलिप लगाती है

लहराती है जब अपना आंचल

हरियाली छा जाती है

नृत्य नटी बन ताली दे दे

अपना नृत्य दिखाती है

नयनों मे मादकता भरकर 

काम खिंचा आता है

हरे हरे पीले वस्त्रांे मंे

सजकर प्रकृति रिझाता है

पत्त्ेा देते ताल हवा तब

झूम झूम कर गाती है

उमग उमग कर मंजरिया

धंूघट से बाहर आती हैं।



Monday 9 October 2023

mukriyan

 मुकरियाँ



नैन चलावे नाच दिखावे

नये रूप घर मोहे रिझावे

बैठे रूप निहारे बीबी

क्यों सखि साजन

ना सखि टी वी



टेर सुनूं तो दौड़ी जाऊँ

वाके ढिंग बैठी बतराऊँ

हूक उठे जो है जाये मौन

क्यों सखि साजन 

ना सखि फोन।


prarthna

 प्रार्थना में बहुत ष्षक्ति है वातावरण निर्मल हो जाता है।हृदय में पवित्रता की भगीरथी बहने लगती है। गायत्री मंत्र जीवन की षक्तिष्है

हजारों दीप जलते हैं मगर क्या बात है साथी

उजाला कैद होता है अंधेरे की सियाही में

जला दो दीप निर्मल ज्योति जिसकी इस तरह चमके

बंधे चांद की राखी ष्षारदा मां की कलाई में ।


Sunday 8 October 2023

kshanikayen

 ☺क्षणिकाऐं


श्वेत दीवार पर

लालटेन की रोशनी

टाग दी हो खूंटी पर

चादर एक झीनी।



आंगन के कोने में

घूप का टुकड़ा

नील में भिगोयी

सुखायी हो सफेद चादर



द्वार खोलते ही

तीखी सर्द हवा

घुस आयी ऐसे

अनचाहा मेहमान 


काले बादल बीच धवल बादल का टुकड़ा

सघन कंुतल बीच झांकता गोरी का मुखड़ा