निश्च्छल प्यार किया करती है
जिसमें कोई चाह नही।
मछली की आॅखों के आंॅसू
कब कब किसने देखे हैं,
जीवन उसका भी जीवन है
दर्द उसे भी लेखे हैं।
माॅ का आंॅचल कैसे भीगा
कौन समझ अब तक पाया
नयनांे के जल से भीगा या
पावन दूध छलक आया ।
माॅ की मुस्काती आॅंखों में
ममता का सागर लहराता
अमृत धट से सिंचिंत आंॅचल
जीवन की बूंदें बरसाता।
माॅं की समता मांॅं ही करती
और न उपमा है दूजी
कहांॅं समायी ममता इतनी
ब्रहमा से भी जाय न बूझी।
जिसमें कोई चाह नही।
मछली की आॅखों के आंॅसू
कब कब किसने देखे हैं,
जीवन उसका भी जीवन है
दर्द उसे भी लेखे हैं।
माॅ का आंॅचल कैसे भीगा
कौन समझ अब तक पाया
नयनांे के जल से भीगा या
पावन दूध छलक आया ।
माॅ की मुस्काती आॅंखों में
ममता का सागर लहराता
अमृत धट से सिंचिंत आंॅचल
जीवन की बूंदें बरसाता।
माॅं की समता मांॅं ही करती
और न उपमा है दूजी
कहांॅं समायी ममता इतनी
ब्रहमा से भी जाय न बूझी।