पतंग
जब तब आंॅखों में एक धुंध छा जाती है
तुम बच्चों की बहुत याद आती है
जब छत से गुजरती है कटी पतंग
तुम्हारे दोैड़ते कदम याद आ जाते हैं
पतंग तुम उडाते थे हुचका मुझे पकड़ाते थे
अब तुम्हारी पतंग कहीं और उड़ रही है
कुछ उलझी टूटी डोर के टुकडे़ पीछे छोड़ गये
उनको सुलझाती उन्हें जोड़ रही हॅूं
बांध रही हूॅ बार बार तुम्हारी छोड़ी पतंग
उड़ रहे है सारे सपने तुम्हारी यादों के संग ।