Wednesday 31 March 2021

patang

  


पतंग


 


जब तब आंॅखों में एक धुंध छा जाती है


तुम बच्चों की बहुत याद आती है


जब छत से गुजरती है कटी पतंग


तुम्हारे दोैड़ते कदम याद आ जाते हैं


पतंग तुम उडाते थे हुचका मुझे पकड़ाते थे


अब तुम्हारी पतंग कहीं और उड़ रही है


कुछ उलझी टूटी डोर के टुकडे़ पीछे छोड़ गये


उनको सुलझाती उन्हें जोड़ रही हॅूं


बांध रही हूॅ बार बार तुम्हारी छोड़ी पतंग


उड़ रहे है सारे सपने तुम्हारी यादों के संग ।