मुकरियाँ
नैन चलावे नाच दिखावे
नये रूप घर मोहे रिझावे
बैठे रूप निहारे बीबी
क्यों सखि साजन
ना सखि टी वी
टेर सुनूं तो दौड़ी जाऊँ
वाके ढिंग बैठी बतराऊँ
हूक उठे जो है जाये मौन
क्यों सखि साजन
ना सखि फोन।
मुकरियाँ
नैन चलावे नाच दिखावे
नये रूप घर मोहे रिझावे
बैठे रूप निहारे बीबी
क्यों सखि साजन
ना सखि टी वी
टेर सुनूं तो दौड़ी जाऊँ
वाके ढिंग बैठी बतराऊँ
हूक उठे जो है जाये मौन
क्यों सखि साजन
ना सखि फोन।
प्रार्थना में बहुत ष्षक्ति है वातावरण निर्मल हो जाता है।हृदय में पवित्रता की भगीरथी बहने लगती है। गायत्री मंत्र जीवन की षक्तिष्है
हजारों दीप जलते हैं मगर क्या बात है साथी
उजाला कैद होता है अंधेरे की सियाही में
जला दो दीप निर्मल ज्योति जिसकी इस तरह चमके
बंधे चांद की राखी ष्षारदा मां की कलाई में ।
☺क्षणिकाऐं
श्वेत दीवार पर
लालटेन की रोशनी
टाग दी हो खूंटी पर
चादर एक झीनी।
आंगन के कोने में
घूप का टुकड़ा
नील में भिगोयी
सुखायी हो सफेद चादर
द्वार खोलते ही
तीखी सर्द हवा
घुस आयी ऐसे
अनचाहा मेहमान
काले बादल बीच धवल बादल का टुकड़ा
सघन कंुतल बीच झांकता गोरी का मुखड़ा
माँ
सुबह सूरज का उजाला
आंगन में भरने से पहले
आंगन पोछ देती है,
किरणों की उजली चादर
मैली न हो जाए,
माँ
खुद भूखी रहकर
हमारे खाली पेटांे को
भरने का इन्तजाम करती है
तृप्ति भरी आंखो से
सहलाती निहारती है
माँ
दिन चलते दिन चढ़ते जाते
एक एक कर सब बढ़ते जाते
अपने अंधेरे एहसास को,
उजाले से भरने की कोशिश में
और भी अंधेरा करती है
माँ
घुटन से उबरने की चाहत
दीवारों की कैद से
निकल भर जाने की आहट
बेचैन कर देती है पुरुष के,
नफरत की आग में झुलस जाती है
और भी घुट जाती है
माँ
आंचल के कोने पर आंसू की बूंदों से
अपनी व्यथा लिखती है
उसे उजालों की जरूरत नहीं
अंधेरे कोने में ही कहती है
मां