बचपन ने दस्तक दी
धीरे से खुल गया द्वार
बाहर से भीतर तक
एक कदम के पार।
भुला दिया हर दुःख को
दुःख पर आये दुःख को
उड़ा दिया यौवन को
जीवन की आंधी ने।
बिछुड़ जीवन मीत न जाने कहाँ मिलेंगे
बुझे हुए ये दीप न जाने कहाँ जलेंगे
मूक हुए जो गीत न जाने कहाँ बजंेगे
टूट गये जो तार न जाने कहाँ ज्ुड़ेंगे
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