मन
मन उड़ता चलता जाता है
कितने बाग समंदर छूकर
माᄀ के आंगन रुक जाता है।
मन उड़ता चलता जाता है
बरसों पहले छोड़ दिया है
फिर भी अपना लगता है
घर के हर कोने को जाकर
झांॅक झांॅक कर रुकता है
मन उड़ता चलाता जाता है।
कभी पकड़ता माᄀ का ऑंचल
ठुनक गले लग जाता है
कभी पिता के पीछे जाकर
कंधे पर चढ़ जाता है
मन उड़ता चलता जाता है
कभी घूमता गलियों गलियों
सखियों के घर फिर आता है
गुᅬे गुड़िया खेल खिलौने
खेल खेल मन बहलाता है।
मन उड़ता चलता जाता है
क्यों पागल मन घूम घूमकर
बचपन ढूᄀढा करता है
पूरे जीवन का सच केवल
बचपन ही में मिलता है
मन उड़ता चलता जाता हैं ।
11
अश्रुसिक्त
क्यों समाज को तुम्हारा
अश्रुसिक्त चेहरा ही नजर आता है
अग्नि पुंॅंज हो तुम
तभी दहकाई जाती हो
देवी हो पैर पूजकर
सिराई जाती हो
क्यों तुम्हारे लिये गाते हैं
तो शोक गीत ही गाते हैं
समाज देता है तुम्हें दर्द
मुस्कराकर सुनाता है
तुम्हारे संघर्ष भरे दिन
कहते हैं तुम्हें कोमल डाल
भार उठाती हो
कितने ही रिष्तों को
जन्म देती हो
सांॅसों के अलावा अपना
कोई और नहीं होता
उसका कोई ठौर नहीं होता
समाज के पास तुम्हें देने को
उपेक्षा तिरस्कार, अपमान
बदले में देती हो
तृप्ति तृप्ति तृप्ति
12
पत्थर नहीं पिघलता
कांटों में ही सबसे सुन्दर फूल खिला करता है
अपनों ही से सबसे ज्यादा दर्द मिला करता है।
कीचड़ में पलता इंदीवर देवों पर चढ़ता है
कांटो को नहीं कभी भगवान् मिला करता है।
धरती सहती बोझ सभी का उसमें ममता होती है
सात परत के नीचे लेकिन आग धधकती रहती है।
जो खुद मौत के सौदागर है मौत से क्यों वो डरते है
मौत खेल है निशदिन जिनका देने में दांव मुकरते हैं।
इन्सानों की बस्ती है इन्सान यहाᄀ बसते हैं
ढूᄀढो मत तुम यहाᄀ फरिश्ते वो आसमान में रहते हैं।
आंॅसू से कितना भी भीगे पत्थर कहाᄀ पिघलता है
बादल चाहे कितना लिपटे चाᄀद कभी नां गलता है ।
मैं नन्हीं कली
मैं एक नन्हीं कली
तुमने मुझे लगाया
मुझे सहेजा
मै अभी खिली भी नहीं
तुमने तोड़ लिया
खांस दिया प्रेमिका के बालों में
तकिये पर
कुचली गई मैं
तुमने मुझे
माला में पिरोया
पहना दिया नेता को
वह एक बार मुस्कुराया
उतार कर रख दिया
चेहरे चमकाने के लिये
भागती भीड़ के
जूतों के नीचे
कुचली गई मैं
तुमने मुझे देवता पर चढ़ाया
मन ही मन इठलाई
देवता के प्रति श्रद्धा
अर्पित भी न कर पाई कि
फैक दी गई उतार कर
भ¦ों के पैरो तले
कुचली गई मैं
जिस पौधे पर खिली थी
जिसने रचना रची थी
जड़ें फिर भी न छोड़ी
वह हारी नहीं
जुट गई जन्म देने पर
फिर एक नई कली
एक नन्ही कली ।
खाली आदमी
घर लौटने की खुशी में
चहचहा रहे थे परिंदे
उड़़ रहे थे अपने गन्तव्य को
बच्चों के पास
पंखो में एक जोश एक उमंग
इंतजार में होंगे वे
अभी उगे नहीं हैं पंख
दूर से ही आभास होता है
चहचहायेंगे चोंच उठाये,
मॉं बाप आयेंगे
दाना लायेंगे,
चीं चीं चीं चीं
खुषी किलकारियों से
गॅूज उठता धोंसला
धुॅंआ फेंकती फैक्टरी की सांस थमी
छूट पड़े उससे झुंड के झुंड
घर के लिये
पसीने से गंधाते
थके थके से कदम
खाली डिब्बे खाली हाथ
सन्नाटे में खिंचे घर में
निंदियाये से बच्चे
थकी थकी सी ᅤंधती पत्नी
चूल्हे की राख में रखी थाली
सन्नाटे की आवाज
आया है एक खाली आदमी ।
15
माᄀ एक बार आ जाओ
एक बार
बस एक बार आजाओ
तेरी गोदी में
सर रखकर
तेरे ऑंचल में
छिप जाᅤᄀ
तेरी उंॅगली पकड़
तुझे खींच ले जाᅤᄀ
मेरे सिर में
रंग बिरंगी पिनें सजा दे
माᄀ
घेरे वाली ॉक
पहनकर
तेरे हाथो को पकड़ूॅं
गोल गोल घूमूᄀ
चक्कर लगाती तू
मुझे गोद में उठा ले
अपना सर मेरे सीने पर रख
मुझे गुदगुदा दे
मैं मुक्त हॅंसी हंॅस दूᄀ
मेरा फिर एक बार
खिलखिलाने का मन करता है
एक बार बस एक बार
माᄀं तुम आ जाओ
दादी नानी और माᄀ बनी
थक गई हूᄀ
गंभीरता का बाना ओढ़
नकली जिंदगी से थक गई हूᄀ
मेरी लाड़ो सोन चिरैया
सुनने को मैं तरस रही हूᄀ
मांॅ एक बार अपनी बाहों का
झूला मुझे झुला जाओ
मंॉं एक बार बस आ जाओ
16
हिन्दी दीन नहीं
भारत माᄀ का षृंगार है हिंदी
दीपित है माथे की बिंदी
¬दय नदी है हिंदी कलकल
बहती हिम से छूती सब दल
हीन नहीं है दीन नहीं है
बहुत सबल भाषा है हिंदी
मन वाणी को सार्थक करती
विज्ञान जनित भाषा है हिंदी
ओठों से चल दिल तक पहुॅंचे
दिल से बोले वाणी हिंदी
घूमो देखो सारी दुनिया
लेकिन घर का आंॅगन हिंदी
देवां की भाषा से निकली
अमृत वाणी प्यारी हिंदी
डाフ षषि गोयल सप्तऋशि अपार्टमेंट
जी -9 ब्लॉक -3 सैक्टर 16 बी
आवास विकास योजना, सिकन्दरा
आगरा 282010 フ9319943446म्उंपस . ेेंपहवलंस3/हउंपसण्बवउ
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