Saturday 7 October 2023

maa

 माँ



सुबह सूरज का उजाला

आंगन में भरने से पहले

आंगन पोछ देती है,

किरणों की उजली चादर

मैली न हो जाए,

माँ

खुद भूखी रहकर

हमारे खाली पेटांे को

भरने का इन्तजाम करती है

तृप्ति भरी आंखो से

सहलाती निहारती है

माँ

दिन चलते दिन चढ़ते जाते

एक एक कर सब बढ़ते जाते

अपने अंधेरे एहसास को,

उजाले से भरने की कोशिश में

और भी अंधेरा करती है

माँ

घुटन से उबरने की चाहत

दीवारों की कैद से

निकल भर जाने की आहट

बेचैन कर देती है पुरुष के,

नफरत की आग में झुलस जाती है

और भी घुट जाती है 

माँ


आंचल के कोने पर आंसू की बूंदों से

अपनी व्यथा लिखती है

उसे उजालों की जरूरत नहीं

अंधेरे कोने में ही कहती है 

मां



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