रात का निविड़ अंधकार
वह बैठा है आप के द्वार
सिकुड़ा सिमटा पूंछ दबाये
हर आहट पर कान उठाये
हर पग ध्वनि पर चौंकता
कौन है गुर्राहट में भौंकता
इधर से उधर चक्कर लगाता
रहता है रात भर जागता
वह आपका चौकीदार है
आपका वफादार है
आपने ही थी एक टुकड़ा रोटी
खाता है दिन में आपकी सोटी
रोटी का कर्ज चुकाता है
नीम के नीचे सिकुड़ सो जाते हैं
एहसान फरामोश नहीं है
कुत्ते हैं कुत्ते कहलाते हैं
कहने को जो है इंसान
पर वक्त आने पर कुत्ते बन जाते हैं।
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