Monday 5 September 2016

बेटी की पीर

;बदरा जो घिर घिर आयो
बरसत अंखियों से नीर रे

चूडी पायाल छनकाये 
पीपल तले नाचे गाये 
झूला पै झूलेतेरी धीय  रे

भइया  को आंचल की छाया 
मुझको दिया  देस पराया 
उमडगी  न हिय रा मे पीर रे

आंगन  में तेरे पलना
सोवे छोटी सी ललना
सोचे क्या  है तकदीर रे

मेरी नानी की जाई
तू भी आई देश  पराई
कैसे टूटे जंजीर रे।
 

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