Tuesday 13 September 2016

जग बोराया

 कुर्सी हित ये जग बौराया
मैं आया बस मैं ही आया
चुन चुन कर देते हैं गाली
मैं उजला तेरी चादर काली
वादे पर वादे करते हैं हूँ
पाके कुर्सी कान न घरते
ढूंढ़ो ढूंढ़ो कहां हैं नेता
फिर ना कभी दिखाई देता
किसको बोट दिया तुम भूल
पांच साल वादों में झूल
जिनकी पहले सिकुड़ी काया
अब मोटा टकला चिकनाया
जिनकी पहले किस्मत फूटी
घर में केवल साइकिल टूटी
अब कारों का उनका बेड़ा
बातें करते कर मुँह टेढ़ा
बन जाये अब अनकी सरकार
बस खाकर ना लेये डकार
जिनका टूटा फूटा कमरा
उनके महल खड़े हो गये
जिनके, कपड़ें कड़क हो गये
समझों नेता बड़ें हो गये




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