Saturday 5 November 2016

बुढापा



बचपन में, घर की टीन केछेदों में, से आती धूप देख
लगता चांद और सूरज ही
उतर आये, धरती पर
उन्हें पकड़ने की कोशिश करते
हथेली पसार लिया करते थे
उभर आये गोलों को
चांद और सूरज समझ
चहक उठा करते थे
यौवन में यही दुपहरी
अजब हुआ करती थी
सोने सी माटी चांदी सी 
धूप हुआ करती थी
दुनिया तो वही है लेकिन
जर्जर जीवन का यह कैसा मोड़
लगता है वे ही धूप के टुकड़े
धरती के हुआ है  श्वेत कोढ़।





No comments:

Post a Comment