पीड़ा की पीड़ा
रसवन्ती के नयनों में
जल की दो बूँद छलक आईं,
किसने उनमें करुणा देखी
किसने देखी है रुसवाई।
कवि ने देखी मादक हाला
अमृत से आपूरित प्याला,
छलछल आल्हादित हृदय लिये
मुखरित उनकी कविता माला।
तूलिका उठा उन मोती को
चित्रित कर दिया चितेरे ने,
अमर क्षणों को कैद किया
बदली पर बिन्दु ठहरने ने।
बार बार कुचले जाकर
जो दर्द निचोड़ा था दिल ने
पीड़ा की उस पीड़ा को
समझा था केवल नयनों ने।
आंचल में अपने सिमटा कर
पलकां से उसको सहलाया,
प्यार भरा चुम्बन देकर
फिर से दिल ही तक पहुँचाया ।
जीवन पंछी
जीवन एक अकेला पंछी
व्यथित चकित भ्रमित सा
दूर गगन में जाये
अनंत दिगन्त कहॉं की माया
लौट डाल पर आये
डाल डाल पर किये बसेरा
कैसे जीवन पाये
माली फूलों के लगाता है
सींचता है पालता है
और काट कर बाजार में
बेच देता है
कसाई मुर्गा, सूअर, बकरी को
खिला खिला कर पालता है
और एक ही वार में काटता है
इसी तरह दुनिया में
इन्सान इन्सान को खा रहा है
ईश्वर अपनी सृष्टि को
अपनी कृति को खा रहा है
धरती को देखते नहीं
आसमां की बात करते हैं
इंसान के लिये घर नहीं
ईश्वर की बात करते हैं
नेति नेति कह जिसको
रिषियों ने गाया है
आज की दुनिया में
एक कोठरी में पाया है
दुनिया पर राज्य करने को
पर्दे में उसको बांधा है
खुद विशाल प्रांगण में बैठे
उसे द्वार के पीछे बंद किया है।
ईश्वर कहाँ हैं
सोचते रह जाते हैं ।
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