Sunday 6 November 2016

मन

म न उड़ता चलता जाता है
कितने बाग समुंदर छूकर
मॉं के आंगन रुक जाता है
मन उड़ता चलता जाता है
बरसों पहले छोड़ दिया है
फिर भी अपना लगता है
घर के हर कोने में जाकर
झांक झांक कर रुकता है
मन
कभी पकड़ता मॉं का ऑचल
ठुनक गले लग जाता है
कभी पिता के पीछे जाकर
कांधे पर चढ़ जाता है
मन
कभी घूमता गलियॉं गलियॉं
सखियों के घर फिर आता है
गुडडे गुड़िया खेल खिलौने
खेल खेल कर बहलाता है
मन
क्यों पगला मन धूम घूम कर
बचपन ढूंढा करता है
पूरे जीवन का सच केवल
बचपन ही में मिलता है
मन

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