एक वीर की मौत
गहन अंधेरी रातों में
जंगल में छिपते जाते
भारत माँ की रक्षा को
प्राणों से प्राण मिलाते,
दुश्मन की हर आहट को
चौकन्ने बढ़ते जाते
जिनमें संसार बसा था
निद्रा के संग बह आते
बेटे को बाहों में घेरे
पत्नी उसे झुलाती हो
थपकी दे दे लोरी गा गा
वीरों की कथा सुनाती हो
उनकी बन्दूकों की मारें तब
दुश्मन का दिल दहलाती हो
मीठे सपने में खोई वह
निद्रा में मुसकाती हो
गोली की बौछारों को जब
वे झेल रहे होंगे तन पर
पति की स्मृतियों के अगनित
गीत मुखर हों अधरों पर
पति के अंकित स्पर्शो पर
धीरे से हाथ फिराती हो
एकांत क्षणों को जीवन दे
खुद ही फिर शरमाती हो।
जिस माँ ने दूध पिलाकर
सिर सहला बड़ा किया था
बेटे के दर्दांं को अपने
सीने पर सहन किया था
दर्दो से बेहाल वीर
बातें करता धड़कन से
माटी को सिंचित करता
वह रक्त बिखरता केशों से
माँ की गोदी के ढूँढ़ ढूँढ़
धरती माँ से वह लिपट गया
पत्थर के तकिये पर सर रख
सूखे पत्तों पर, पसर गया
जिसकी सांसों से सांस बंधी
कब तार अचानक टूट गये
आहट भी तनिक मिली नहीं
कब सारे बंधन छूट गये
कब सारे बंधन छूट गये।
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